सहीदो की चिताओं पर..... भारत के युवाओं में आजादी की ज्वाला भड़काने वाले कवि व सेनानी हितैषी जी

in #up2 years ago

सहीदो की चिताओं पर जुड़ेंगे हर वर्ष मेले।
वतन पर मरने वालो का यही बाकी निशा होगा।।
गंजमुरादाबाद।
प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सुकविमनीषी पंडित जगदम्बा प्रसाद मिश्र हितैषी जी का जन्म 12 नवंबर 1895 में गंजमुरादाबाद नगर में हुआ था देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले भारत के इस बीर सपूत का 11मार्च 1957 को कानपुर में देहांत हो गया था।स्वतंत्रता आंदोलनों के साथ अपनी कविताओं से युवाओं में आजादी की ज्वाला भड़काने वाले बीर सपूत का नाम हमेशा के लिए इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया।
गंजमुरादाबाद नगर के ब्राह्मण परिवार में जन्मे पंडित जगदम्बा प्रसाद मिश्र हितैषी जी के पितामह पंडित बाजीलाल मिश्र भग्वंतनगर कस्बा मल्लावां जनपद हरदोई के चकलेदार थे जिनका बसाया हुआ मोहल्ला बाजीगंज आज भी मौजूद है आजादी के प्रथम स्वधीनता संग्राम में पितामाह बाजीलाल तथा प्रपितामाह रमानाथ मिश्र ने अंग्रेजो के विरुद्ध भारतमाता की वेदी पर अपने प्राणों की आहुति दी थी।अंग्रेजो से उत्पीड़ित होकर उनका परिवार मल्लावां कस्बे से गंजमुरादाबाद नगर में आकर बस गया।जिसके बाद कानपुर नगर उनका मुख्य कार्यक्षेत्र बन गया।अपने पुरखों की राह पर चलकर हितैषी जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाते हुए अपने युवाकाल के अनेक वर्ष कारागार में कठोर यातनाएं सहते हुए बिताए।आजादी के दौरान एक और वह क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजो के छक्के छुड़ा रहे थे तो वही दूसरी ओर अपने काव्यगुरु आचार्य ज्ञाप्रसाद शुक्ल सनेही जी से प्रेरणा लेकर ओजस्वी देशभक्ति पूर्ण कविताएं लिखते थे।उनकी रचनाएं दैनिक पत्रों में निरंतर छपती थी और देशवासियों को राष्ट्रप्रेम तथा समर्पण की प्रेरणा प्रदान करती थी।1916 में कानपुर के भारतीय प्रेस से प्रकाशित अमरीका को स्वतंत्रता कैसे मिली नामक पुस्तिका के अंतिम कवर पर छपी उनकी निम्नलिखित पंक्तियां आजादी के दीवानों की कंठहार बन गई।
वतन की आबरू का पास देखे कौन करता है।
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहा होगा।
जुदा मत हो मेरे पहलू से ए दर्दे वतन हरगिज।
न जाने बादे मुर्दन मैं कहा और तू कहा होगा।।
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज देखेंगे।
जब अपनी ही जमी होगी और अपना आसमा होगा।।
सहीदो की चिताओं पर _ _ _
_ _ _ _ सहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले
विशाल भारत के संपादक बनारसी दास चतुर्वेदी ने हितैषी जी को रचनाकार के रूप में पुष्टि की।साथ ही बिस्मिल जी ने जेल में लिखी आत्मकथा के परिशिष्ट में हितैषी जी की रचना का उल्लेख किया।मैनपुरी के क्रांतिकारी पंडित गेंदालाल दीक्षित की संस्था मातृवेदी की ओर से फौजी छावनियों में बांटने के लिए एक लाल पर्चा छपवाया गया संस्था के सदस्य के रूप में एक ज्योतिषी के भेष में सन 1917 में हितैषी जी पर्चा बांटते हुए देहरादून की छावनी में बना लिए गए किंतु हवालात से फरार होकर वह कलकत्ता पहुंच गए।जिसके बाद 1921 में बंगाल के असहयोग आंदोलन में उन्हें डेढ़ साल की सजा हुई तथा सन 1923 में जब झंडा आंदोलन चला तो कानपुर के टाउनहाल पर राष्ट्रीय तिरंगा फहराकर उन्होंने भारत माता का जयघोष किया जिससे उन्हें ढाई साल कारावास मिला।
देश की आजादी में वतन पर मर मिटने वाले इस बीर सपूत की जन्मभूमि गंजमुरादाबाद में मौजूदा समय घर के नाम पर कुछ नही बचा है उनका पैतृक आवास भ्रष्टाचारियों की आगोस में आकर अवैध अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया है।कुछ कविप्रेमियो द्वारा दान की हुई भूमि पर एक स्मारक स्थल बनवाया गया है जहा उनकी मूर्ति स्थापित है इस स्थल पर औपचारिकता पूर्ण करते हुए नगर पंचायत द्वारा ट्री गार्डों के सहारे घेराव किया गया है।तथा ब्लाक कार्यालय के सभागार को हितैषी जी का नाम दिया गया है बस यही स्थल व सभागार ही गंजमुरादाबाद नगर में हितैषी जी की यादों को संजोए हुए है।IMG-20220807-WA0150.jpg