बहुत महंगी पड़ेंगी ये मुफ्त की 'रेवडि़यां', क्यों पीएम मोदी ने कहा
राजनीतिक दलों की ओर से मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त में सुविधाएं बांटने पर लगाम कसने की बहस अब जोर पकड़ रही है. कोई टीवी, फ्रिज मुफ्त दे रहा तो कोई बिजली बांट रहा है. इससे राज्यों के खजाने पर तो जोर पड़ता ही है, अन्य जरूरी योजनाएं भी लटक जाती हैं. पीएम मोदी के बयानों ने इस मुद्दे को और हवा दे दी है.
नई दिल्ली. मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त सुविधाएं बांटने के चलन पर अब बहस जोर पकड़ रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे युवाओं और राष्ट्र का अहित करने वाला कदम बताया.
पीएम मोदी ने पिछले दिनों बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन मौके पर कहा कि वोट के लिए मुफ्त में सुविधाएं बांटने वाला कल्चर देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत महंगा पड़ सकता है. उन्होंने युवाओं को भी सचेत करते हुए कहा-मुफ्त का यह कल्चर आपके वर्तमान को खत्म करके भविष्य को अंधेरे में धकेल देगा. जो लोग मुफ्त की सुविधाएं बांटने का ऐलान करते हैं, वे बुनियादी ढांचा बनाने और देश के भविष्य के संवारने में कोई योगदान नहीं देते.
देश का भविष्य है मुफ्त कल्चर की कीमत’
पीएम मोदी ने अपने छोटे से भाषण में इस बात को प्रमुखता से उठाया कि आज के मुफ्त कल्चर की कीमत देश का भविष्य होगा. परोक्ष रूप से उनका निशाना आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर था, जिन्होंने पहले दिल्ली फिर पंजाब और अब गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया है. यह राज्य सरकार पर 8,700 करोड़ रुपये का सालाना बोझ डालेगा. यह बात ज्यादा चिंताजनक इसलिए है, क्योंकि अभी बिजली वितरण कंपनियों यानी डिस्कॉम का राज्य सरकारों पर कुल बकाया बढ़कर 2,40,710 करोड़ रुपये पहुंच गया है.इसका नुकसान ये होगा कि बढ़ते बकाए के कारण डिस्कॉम राज्यों को सप्लाई कम देंगे और बिना बिजली के न सिर्फ युवाओं की पढ़ाई बाधित होगी, बल्कि तमाम छोटे-मोटे उद्योगों पर भी असर पड़ेगा. ओईसीडी की 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली सप्लाई में भारत 141 देशों की सूची में 108वें नंबर पर है. इतनी खराब रैंकिंग के बावजूद यह रवैया भविष्य के अंधकार में डालने वाला ही साबित होगा.
तथ्यों पर खरे नहीं उतरते तर्क
प्रधानमंत्री के इस बयान पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पलटवार करते हुए कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य मुफ्त योजनाओं की श्रेणी में नहीं आता. दिल्ली सरकार मुफ्त बिजली के खर्च को वहन कर सकती है और इस पर सब्सिडी देना गलत नहीं है. वैसे तो यह सीधी सी बात लगती है, लेकिन इसका खामियाजा भी राज्य के बुनियादी ढांचे को ही भुगतना होगा. बिजली की सब्सिडी के रूप में खर्च होने वाली भारी-भरकम राशि को राज्य के विकास में लगाया जा सकता है. एशिया के अन्य देशों को देखें तो जापान, दक्षिण कोरिया और चीन ने इतनी तेज तरक्की इसीलिए हासिल की, क्योंकि वहां इन्फ्रा क्षेत्र में बड़ा निवेश आया.
श्रीलंका है सबसे बड़ा सबक
मुफ्त की योजनाएं लाने और कर्ज बढ़ाने से क्या नुकसान होगा, इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्रीलंका के रूप में सामने है. साल 2005 में ही आईएमएफ ने उसे चेतावनी दी थी कि उसका राजकोषीय घाटा अन्य देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है. सरकारी कर्ज भी जीडीपी के 100 फीसदी से ऊपर चला गया है. इससे टैक्स में इजाफा हुआ निजी निवेश व खर्च घटता चला गया. सरकार के राजस्व का ज्यादातर हिस्सा कर्ज की ब्याज दरें चुकाने में चला गया और आर्थिक स्थिति पूरी तरह टूट गई.वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि भारत श्रीलंका तो नहीं है, लेकिन जीडीपी के अनुपात में उसका कर्ज भी लगताार बढ़ता जा रहा है. अनुमान है कि यह जीडीपी का 91 फीसदी पहुंच गया है, जो 48 फीसदी तय लक्ष्य से काफी ज्यादा है. अभी सरकार का 26 फीसदी राजस्व सिर्फ कर्ज की ब्याज दरें चुकाने में जाता है. यह अन्य प्रतिस्पर्धी इकॉनमी के मुकाबले काफी ज्यादा है. इससे भारत की क्रेडिट रेटिंग पर भी असर पड़ सकता है.
अब सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह मामले सुनवाई के बाद इस पर नजर रखने के लिए एक्सपर्ट का पैनल बनाने का फैसला किया है. इसमें नीति आयोग, वित्त आयोग, चुनाव आयोग, आरबीआई और राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल होंगे. पैनल इस समस्या का हल सुझाएगा. यह पैनल हर चुनाव में होने वाली घोषणाओं की कुल लागत का आकलन करेगा और ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर उसे पब्लिश भी किया जाएगा. इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड रिसर्च के प्रोफेसर एस चंद्रशेखर ने कहा, राजनीतिक दलों को मुफ्त योजनाओं की घोषणा के साथ उसके लिए जरूरी फंड जुटाने का तरीका भी बताना चाहिए.मुफ्त रेवडि़यां बांटने में क्षेत्रीय दलों की ओर से सबसे ज्यादा लापरवाही बरती जा रही है. सुप्रीम कोर्ट का पैनल इस समस्या पर लगाम लगाने के पर्याप्त उपाय सुझाएगा. ताकि, पता चले कि मुफ्त योजनाएं अमुक राज्य के लिए कितनी महंगी पड़ने वाली है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी पीएम मोदी की बात से इत्तेफाक रखते हैं. उन्होंने पिछले साल एक भाषण के दौरान कहा था कि देश में कल्याणकारी योजनाओं पर लगाम कसने की जरूरत है और इसके जाल में फंसने के बजाए हमें पब्लिक सर्विस पॉलिसी में सुधार करना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसी भी देश में चल रही कल्याणकारी योजनाएं उसकी आर्थिक स्थिरता के मुकाबले ज्यादा होंगी, तो विकास पर बुरा असर पड़ेगा.
पार्टियों पर अंकुश लगाने की तैयारी
वोटरों को लुभाने के लिए बांटी जा रही मुफ्त सुविधाओं को लेकर पहली बार चर्चा शुरू हुई है और ऐसा अनुमान है कि इससे क्षेत्रीय दलों पर दबाव पड़ेगा और वे अपने मुफ्त कल्चर पर थोड़ा बहुत काबू पाने की कोशिश करेंगे. कम से कम मुफ्त की इस रेवडि़यों पर लगाम लगे और उसे राज्य के बजट के अनुपात में कुछ फीसदी तक सीमित किया जा सके. देश में जीएसटी, निजीकरण और श्रम सुधारों के साथ इस दिशा में भी काम किया जा सके.