रथयात्रा जगन्नाथ जी हैं भगवान जगन्नाथ जी युगल मूर्ति का प्रतीक है

in #jagannath2 years ago

#रथयात्रा जगन्नाथ जी हैं भगवान जगन्नाथ जी युगल मूर्ति का प्रतीक है IMG-20220701-WA0046.jpg
हम रात की प्रार्थना में अक्सर सब की जय बोलने के साथ उड़ीसा जगन्नाथ की जय भी बोलते हैं ।उड़ीसा को उत्कल प्रदेश भी कहते हैं ।हर साल जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा का आयोजन होता है फिर गुजरात में भी इसी तर्ज पर रथयात्रा शुरू हुईं ।आज लगभग भारत के हर प्रदेशों के कई स्थानों पर रथयात्रा का आयोजन होता है और करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु इसमें सहभागिता करते हैं ।
उत्कल के प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ जी हैं भगवान जगन्नाथ जी युगल मूर्ति का प्रतीक है अर्थात राधा और कृष्ण से मिलकर जगन्नाथ जी बनते हैं ।
जबकि महाप्रभु चैतन्य की परंपरा में भगवान जगन्नाथ जी का ही एक रूप श्री कृष्ण जी को माना गया है ।
आषाढ़ सुदी द्वितीया को भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा शुरू होती है इस यात्रा में बलराम जी ,सुभद्रा जी ,चक्र और फिर भगवान जगन्नाथ का रथ होता है भगवान जगन्नाथ जी सबके राजा है और प्रजा की रक्षा करते है वह ""सब मानसा मोर प्रजा ""का संदेश देते है यानि सब मनुष्य मेरी सन्तान है जो हमें वसुधैव कुटुंबकम् की परम्परा तक ले जाती है ।
लेकिन हमारे इन भगवानों के हाथ नहीं दिखाते है इनके बारे में एक कथा है कि राजा इंद्रधुम्न को समुद्र में तैरता हुआ लकड़ी का तख्ता मिला उन्होंने तय किया इस लकड़ी के तख्ते से मूर्तियां बनवाएंगे ।उन्होंने एक बड़ई से बात की ,बढ़ई ने उत्तर दिया की वह कमरे के अंदर बैठकर पूरा काम करेगा और जब तक काम पूरा नहीं हो जाए तब तक उसको कोई टोका-टाकी नहीं करेगा।
जब कई दिनों तक बढ़ई बाहर नहीं निकला तो राजा को शंका हुई कि कहीं बढ़ई को कुछ हो तो नहीं गया उन्होंने किवाड़ खोल दिए तो वहां बढ़ई नहीं मिला ,हां सिर्फ मूर्तियां मिली जो अधूरी थी और जिनके हाथ नहीं थे दरअसल बढ़ई के रूप में भगवान विश्वकर्मा स्वयं आये थे । और विश्वकर्मा
गुस्सा में आ गये और चले गये । तब आकाशवाणी हुई आप इन्हीं की मूर्तियों की पूजा करें। राजा ने मंदिर में यही मूर्तियां स्थापित करा दी तब से इनकी पूजा होने लगी ।
और दूसरी कहानी है रुकमणी जी अन्य पटरानियों को राधा कृष्ण की निश्चल प्रेम की कहानी सुना रही थी सब भाव विभोर होकर सुन रही थी इतने में कृष्ण बलराम भी वहां आ गए और बाहर वह खड़े होकर कथा सुनने लगे । कथा विभोर करने बाली थी इस कथा को सुनकर कृष्ण बलराम और सुभद्रा इतने भाव विभोर हुए कि उनके रूप परिवर्तित होने लगे उनके हाथ दिखलाई देने बन्द हो गये और सुदर्शन चक्र ने भी अपना रुप बदल दिया तब से यह परंपरा बन गई कि इसी रुप में पूजा की जायेगी ।

उड़ीसा का समुद्र तट सबसे ज्यादा सुंदर माना जाता है।आज भी सबसे ज्यादा सैलानी इसी समुद्र तट पर आते हैं।
विभिन्न पुराणों में रथयात्रा का वर्णन है स्कंद पुराण कहता है कि जो लोग इस यात्रा में संकीर्तन करते हुये अंतिम पड़ाव गुंडीचा तक पहुंचेगे वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाएगें । और जो लोग अपने हाथ से इस रथ को खींचेंगे वह भी ईश्वर के प्रिय होंगे तब से यह परंपरा बराबर चली आ रही है । चैतन्य महाप्रभु के अनुयाई आज भी हाथ उठा कर भाव‌ विभोर होकर आमार भगवान कहते हुए ध्यानस्थ हो जाते हैं ।
जगन्नाथ जी भारत की आत्मा है और प्राय‌ सारा ग्रामीण भारत जिंदगी में एक बार जगन्नाथ जी की यात्रा की आकांक्षा रखता है। बुन्देलखण्ड से लाखों श्रद्धालु हर साल जगन्नाथ जी की यात्रा करते हैं और अपने को आधुनिक समझने बाले लोग पुरी कह कर टूर पर जाते हैं।
फणीश्वर नाथ रेणु के प्रसिद्ध उपन्यास "मैला आंचल" का प्रसिद्ध पात्र वावनदास जो विहार के पूर्ववर्ती पुर्णिया जिले के मेरीगंज गांव का कांग्रेस का पूर्ण कालिक कार्यकर्त्ता है वह अक्सर सोते जागते सपना देखता है कि वह जगन्नाथ जी की यात्रा से लौट रहा है और लोग आपस में चर्चा कर रहे हैं यह देखो " ताड़ के पत्तों का छाता लगाये वावन गुसाई है जो जगन्नाथ यात्रा से लौटे हैं ,वावन गाता है ""अरे जगन्नाथ हो भाई ,बाबा हो विराजे उड़िया देश में""


इसी से हम भगवान जगन्नाथ की महत्ता समझ सकते हैं।
बुन्देलखण्ड के ग्रामीण भी अपने जीवन काल में एक बार जगन्नाथ जी की यात्रा की कामना रखते हैं और वहां का भात खाने की आकांक्षा मन में दवाये रखते हैं।और वहां से पवित्र वैंत लाकर उन्हें पूजा स्थल‌ पर रखते हैं और उसकी भी पूजा करते हैं ।
हम सब का सौभाग्य है की ललितपुर का प्रसिद्ध हुड्डैत परिवार हर साल ललितपुर में रथयात्रा का आयोजन करता है और दूसरा सौभाग्य है की सन्त नाभदास के प्रसिद्ध ग्रन्थ भक्तमाल के अनुसार जिन्हें सुमरिनी के गुरियों में स्थान दिया गया है के प्रसिद्ध संत बाबा सदन जो जगन्नाथ जी से जुड़े थे वह भी ललितपुर में रह चुके हैं ।
..........हम आज जो भेदभाव विहीन हिन्दू एकता की बात करते हैं ।वह जगन्नाथ पुरी में काफी पहले आ चुकी थी जहां हिन्दू समाज के हर जाति वर्ग का व्यक्ति एक पंक्ति में बैठे कर एक साथ विना भेदभाव के बात खाते हैं।
अन्त में ____
____जगन्नाथ को भात
जगत पसारे हाथ____


यह भात सदियों से विना किसी भेदभाव के सारा समाज पंक्तिवद्ध वैठ कर खाता है ।

देवेन्द्र गुरु ललितपुर