बाल मजदूर

in #siddharthnagar2 years ago

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आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस है । आज से 19 वर्ष पूर्व 12 जून 2002 को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बाल श्रम को रोकने के लिए इसकी शुरुआत की थी।बावजूद इसके सिद्धार्थनगर जिले में बाल श्रम बड़ी संख्या में आज भी देखे जा सकते हैं। जिले के अधिकतर होटलों, चाय की गुमटियों और सड़कों पर कचरा उठाते बच्चे आपको हर समय मिल सकते हैं। हद तो यह है कि सरकारी कामों विशेषकर मनरेगा के काम भी बाल श्रमिकों से कराने के कई मामले आ चुके हैं। सिद्धार्थ नगर का श्रम विभाग बस दुकानों का रजिस्ट्रेशन और उन्हें श्रम विभाग का प्रमाण पत्र देने तक ही सीमित रह गया है। जिस तरह बड़ी संख्या में जिले में बाल श्रम के मामले आ रहे हैं उससे इस विभाग के औचित्य पर ही सवाल खड़ा हो गया है। बाल श्रम को लेकर विभाग की उदासीनता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के अवसर पर भी दोपहर 1:00 बजे तक कहीं भी कोई भी जागरूकता का कार्यक्रम नहीं हुआ है।
होटलों, चौराहों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर काम करने वाले बाल श्रमिकों की अपनी ही मजबूरियां और अपने ही तर्क हैं उनसे जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि वे अपने घर के बड़े हैं घर पर किसी के मां नहीं है तो किसी के बाप अपने छोटे बच्चों की परवरिश का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर है बाल श्रमिकों ने कहा कि वह भी पढ़ना और आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन घर की मजबूरी उन्हें ऐसा करने से रुकती है उनका साफ कहना है कि उनके कमाए हुए 100 से लेकर ₹300 में उनके घर का खर्च चलता है।

हालांकि सिद्धार्थनगर जिला श्रम विभाग के अधिकारियों के अपने बड़े बड़े दावे हैं श्रम प्रवर्तन अधिकारी लीलाधर की माने तो जब जब शासन से निर्देश मिलता है तो उनके विभाग के द्वारा बाल श्रम को रोकने के लिए अभियान चलाए जाते हैं उन्होंने बताया कि पिछले साल 10 बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिलाई गई थी लेकिन इस वर्ष अभी तक शासन के द्वारा ऐसा कोई निर्देश ना आने की वजह से अभी तक कोई भी अभियान नहीं चलाया गया है उन्होंने बताया कि जब उन्हें निर्देशित किया जाता है उसी वक्त वह इस तरह का अभियान चलाते हैं श्रम प्रवर्तन अधिकारी ने कहा कि आज के दिन वे व्यापारियों के साथ बैठक करने का प्लान कर रहे हैं।