हवाएं वासंती
हवाएं वासंती, मन ह्रदय फूले सरस हैं
दिशाएं माँती सी,गगन धरती नृत्य रत हैं
कि फूलों की भाषा पवन पर आरूढ़ उड़ती
सजाती आत्माएं रसिक मन स्वीकार करती
कि रंगों में डूबे विरस तक, खो के विरसता।
वयस्कों बूढ़ों में उमड़ तरुणाई मचलती
नगाड़ों पे गूंजी धमक,बहके बोल मुँह से
नशे में बौरा के सब विवश आपा रहित हैं
न काली आत्मा के घृणित बहकाये बहकिये
न खूँ की होली को लड़ झगड़ के खेल पड़िये
कि मस्ती में डूबे प्रकृति रँग में मत्त रहिए
सभी की आत्मा के अतल तल में मुग्ध खिलिये।