कविता
ग्रीष्म की तरह जीवन तप रहा है ।
मौन प्रारब्ध है , भावनाये आहत है ।
सोच दूभर है ,और जीना दुश्कर है ।।
ग्रीष्म की तरह.....
शजर उदास है ,पंछी बैचेन ।
गाव की बगिया भी कुछ उजाड़ है ।।
ग्रीष्म की तरह .....
रिश्ते बिखरे है , मकसद हैरान है ।
दिल ठगासा , एकांत हंस रहा है ।।
ग्रीष्म की तरह .....
नदियां गुमसुम , पहाड़ वीरान है ।
जंगलो से गाव भी खामोश ,परेशां है ।।
ग्रीष्म की तरह ....
जीत डरा सा , हार मुस्कुराता है ।
ये कैसा मंजर जीवन दिखाता है ।।
ग्रीष्म की तरह ...
पगडंडीयां सुनी ,झीले सुखी पड़ी है ।
पथ्तरों के पसीने से दिल पसीजता हो ।।
ग्रिं की तरह.....
Ok
Nice 👌