सुपर इंपोज्डट्रांसपेरीज

in #poem2 years ago

दृश्यों का दूसरे दृश्यों से दबते जाना शुरू है चुका था
स्मृतियों में दृश्य इसी तरह एक के ऊपर एक
लदते जाते हैं

लेकिन इसमें शक नहीं कि
पहला दृश्य ही चमत्कारी होता है
भले ही वह अब सबसे नीचे दबा होता है
लेकिन उसमें जो आब होती है दीप्ति होती है
और सनातनी भाषा मे कहें तो उसका
जो अपना तेज होता है

कई कई सुपर इंपोज हो रहे दृश्यों के बावजूद
वह नीचे से चमकता रहता है

स्मृतियों में ये जो श्याम हरिति द्युति होती है
ये राधा नागर वाली ही समझो
प्रेम दबा होता है
तरह तरह की ऊटपटांग ऊबड़ खाबड़़
खुरदरे भारी और उबाऊ अनुभवों से
कसमसाता हुआ फिर भी कौंध जाती है
नीलवन में केशरिया दीपशिखा सी
कोई द्युति

स्मृति के दृश्य कितने भी धोये फींचे जायें
विरंजक विफल होते हों उन पर
ऊपर तह पर तह लगी हो
खुरदरे कटे छिले चुटहिल
खराब अनुभवों की कितनी भी लादी हो
नीचे से झाँकती है वही द्युति
जो काली कसौटी पर
कसते समय प्रेम से स्फुरित हुई थी

स्मृति में दृश्य कभी
सिर्फ बुरे अनुभवों से नहीं बनते
वे बनते हैं प्रेम के स्फुरण से ही
और वह निर्गुण नहीं रह सकते
जब तक विकार अपने लम्बे सैरा दृश्यों को
टुकड़े टुकडे करके उन पर
परत दर परत फैला कर ढंक न दे

सारी ट्रांसपेरेंसीज और सुपरइंपोज्डट्रांसपेंसीज को
रोशनी में जाँचने के बाद
हर बार पाया गया तली में जो दबा है
उसी की द्युति
सभी स्मृति दृश्यों को भेद कर आती है

इस तरह की ट्रांसपेरेंसीज का
चलन आवरण पृष्ठ बनाने में तो रहा नहीं
फिर भी अब भी कोई कोई
पुराने किसिम की कविता में करते रहते हैं