माँ को समर्पित कविता

in #poem2 years ago

लब्बो पर उसके कभी बदुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती
इस तरह वो मेरे गुन्हो को धो देती है

माँ बहुत गुस्से में होती है तो बस रो देती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसु
मुदतो माँ ने नहीं धोया दुपटा अपना

अभी जिन्दा है मेरी माँ मुझे कुछ नहीं होगा
मै जब घर से निकलता हूँ तो दुआ भी साथ चलती है मेरे
जब भी कश्ती मेरी शेलाब में आ जाती है

माँ दुआ करती हुई खुआब में आ जाती है
ए अँधेरे देख ले तेरा मुंह कला हो गया
माँ ने आंखे खोल दी और घर में उजाला हो गया

मेरी खुआइश है की मै फिर से फ़रिश्ता हो जाऊ
माँ से इस तरह लिपटू की फिर से बच्चा हो जाऊ

माँ के यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद होती है वहा इतनी नमी अच्छी नहीं होती