Book review: द ग्रेट ट्राइबल वारियर्स हाफ भारत में है आजादी के गुमनाम नायको की गाथा

in #india2 years ago

देश में स्वतंत्रता की लड़ाई पहली बार 1857 में नहीं लड़ी गई थी। भारत भूमि पर इस संघर्ष की शुरुआत इससे 75 साल पहले पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिण तक समूचे जनजातीय क्षेत्रों में आरंभ हो गई थी। यह लड़ाई वीर आदिवासी नायकों की अगुआई में भारत के आजाद होने तक चलती रही। उन्होंने यह लड़ाई पारंपरिक हथियारों-तीर-धनुष और भाला-बरछा से लड़ी थी। भारत माता को पराधीनता से मुक्ति दिलाने के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी। दुख की बात है कि इतिहास की किताबों में इनके त्याग और बलिदान की गाथा नहीं मिलती। 'द ग्रेट ट्राइबल वारियर्स आफ भारत' पुस्तक ऐसे ही आजादी के गुमनाम नायकों से हमें रूबरू कर रही है। इसे तुहिन ए. सिन्हा और अंबालिका ने लिखा है।

अंग्रेजी में लिखी इस पुस्तक में 17 अध्याय हैैं। प्रत्येक पाठ एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी की संघर्ष गाथा का सजीव चित्रण करता है। इसकी शुरुआत तिलका मांझी से हुई है, जिनका जीवन 1750 से 1785 था। फिर थलक्कल चंथु, बुधू भगत, यू तिरोत सिंह, सिद्धू मुर्मू-कान्हू मुर्मू-चांद मुर्मू-भैरव मुर्मू, बाबूराव शेडमाके-रामजी गोंड, टंट्या भील, गुरु गोबिंद गिरी, जतरा उरांव, अल्लूरी सीताराम राजू, लक्ष्मण नायक, कोमुरम भीम, हेलेन लेपचा, जयपाल मुंडा, रानी गाइदिन्ल्यू, दशरीबेन चौधरी, पुतलिमाया देवी के बारे में विस्तार से बताया है। भारत जयपाल सिंह मुंडा संविधान सभा के सबसे प्रखर वक्ताओं में से एक थे।यह पुस्तक बताती है कि आजादी की लड़ाई में जितना योगदान महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस आदि के क्रांतिकारियों का था, उतना ही योगदान भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों में इन जनजातीय योद्धाओं की गुरिल्ला युद्ध शैली का भी था। हालांकि आजादी के बाद जिन लोगों के हाथों में सत्ता गई, उनके प्रशंसक इतिहासकारों ने संघर्ष गाथा में इनका पन्ना साजिशन नहीं जोड़ा। अच्छी बात यह है कि उस गलती को आज हर स्तर पर सुधारा जा रहा है। यह किताब इसमें बेहतर तरीके से योगदान करती है। एक बड़े वर्ग तक इनकी कहानी पहुंचाने के लिए हिंदी में भी इसका अनुवाद किया जाना चाहिए।

पुस्तक : द ग्रेट ट्राइबल वारियर्स आफ भारत

लेखक : तुहिन ए. सिन्हा और अंबालिका

प्रकाशक : रूपा पब्लिकेशंस

मूल्य : 495 रुपये![IMG_20220723_195349.jpg](