शिवपाल-आजम को क्यों नहीं मना रहे अखिलेश यादव

in #politics2 years ago

Screenshot_2022_0419_184847.jpgअमरेन्द्र सिंह चौहान
लखनऊ ।
शिवपाल-आजम को क्यों नहीं मना रहे अखिलेश यादव, टीपू साफ करना चाहते है 'सुल्तान' का रास्ता
समाजवादी पार्टी में विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद फूट पड़ गई है। शिवपाल यादव और आजम खान का खेमा खुलकर नाराजगी जाहिर कर रहा है। लेकिन अखिलेश यादव उन्हें मानने की कोशिश करते नहीं दिख रहे हैं।उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) में घमासान मचा हुआ है। सपा अध्यक्ष के चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) प्रुख शिवपाल यादव बगावत का मौन ऐलान कर चुके हैं। जेल में बंद और सपा के सबसे कद्दावर मुस्लिम चेहरा आजम खान का परिवार भी अखिलेश की बेरुखी से आहत है। चर्चा यह भी है कि शिवपाल और आजम साथ आकर किसी नए मोर्चे का गठन कर सकते हैं। इस बीच एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि क्या अखिलेश इन्हें मनाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? और यदि नहीं कर रहे हैं तो इसके पीछे क्या वजहें हो सकती हैं?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो समाजवादी पार्टी में भी कांग्रेस की तरह युवा बनाम प्रौढ़ की एक जंग है। मुलायम सिंह यादव ने जब से सक्रिय राजनीति से दूरी बनाने की शुरुआत की तभी से विरासत की यह जंग चल रही है। 2012 में सपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद मुलायम सिंह यादव ने बेटे टीपू को अवध की गद्दी पर बिठा तो दिया, लेकिन वह एक ऐसे 'सुल्तान' बने रहे जिनके सेनापति और दीवान उनसे अधिक ताकतवर थे। इनमें शिवपाल और आजम खान भी शामिल थे। उस दौरान यह भी कहा जाता था कि यूपी में साढ़े चार सीएम हैं, जिनमें अखिलेश आधे ही थे।
यूपी की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति शास्त्र के जानकार कहते हैं कि अखिलेश यादव लंबे समय से इन नेताओं की छाया से निकलने की कोशिश में हैं। यही वजह है कि हाल के विधानसभा चुनाव में उन्होंने नई सपा का नारा दिया था। हालांकि, वह जनता को विश्वास नहीं दिला पाए और यही वजह है कि प्रदर्शन में सुधार के बावजूद वह सत्ता से दूर रहे गए। अब वह एक ऐसी सपा बनाना चाहते हैं, जिसमें सिर्फ उनकी चले।
वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह कहते हैं, ''अखिलेश यादव बहुत स्ट्रॉन्ग माइंड के व्यक्ति हैं। उन्होंने कुछ सोचा है या जो उनको सलाह दी गई है कि 'नई सपा' ही उनका फ्यूचर ठीक कर सकती है। पुरानी सपा' में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, यादवों की पार्टी की जो छवि बन गई थी, अखिलेश उसे तोड़ने की कोशिश में हैं। वह गैर यादव जातियों पर फोकस कर रहे हैं। जिन वर्गों पर सपा की पकड़ लंबे समय से कायम है, अब उन पर कुछ कम फोकस करके दूसरे वर्गों को साथ जोड़ने की कोशिश में अखिलेश दिखते हैं। यह अलग बात है कि शिवपाल की बहुत पकड़ थी सपा के कार्यकर्ताओं पर, लेकिन अब वह अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं और उससे कुछ खास हासिल नहीं कर पाए।'' सतीश के सिंह इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि अखिलेश पूरी तरह से अब पार्टी पर एकाधिकार की ओर बढ़ रहे हैं।
सवाल यह भी उठता है कि मुसलमानों का सबसे अधिक वोट मिलने के बाद भी अखिलेश सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे को कैसे दरकिनार कर सकते हैं? क्या इससे उन्हें नुकसान नहीं होगा? जानकारों के मुताबिक, अखिलेश का मानना है कि मुसलमानों के पास यूपी में सपा के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भाजपा को हराने के लिए उन्हें सपा का ही सहारा लेना होगा। जिस तरह बसपा के कमजोर पड़ने पर मुस्लिम वोटर्स ने हाथी की ओर रुख नहीं किया, अखिलेश को उम्मीद है कि आजम खान के अलग होने पर भी अल्पसंख्यक समुदाय सपा के पास ही रहेगा। सतीश के सिंह से जब हमने यह सवाल किया तो उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव की नजर गैर यादव ओबीसी वोट बैंक की तरफ है। दूसरी तरफ वह पार्टी की छवि मुस्लिम परस्त नहीं रखना चाहते हैं। कहीं ना कहीं आजम की छवि इसमें बाधक है।