आखिर अकेला शिक्षक ही दोषी क्यों ?,देखें पढ़े सोचें ओर एक बार विचार जरूर करें
आखिर अकेला शिक्षक ही दोषी क्यों? 10 मिनट लेट हो जाने पर शिक्षको पर ऊँगली उठाने वाले लोग बताएं कि किस अधिकारी के कार्यालय में जाने पर आपको उसके आने का घंटो इन्तजार नहीं करना पड़ता ?किस कार्यालय में जाने के बाद आपको यह सुनने को नही मिलता कि साहब आज नहीं हैं ? हफ्तों इन्तजार करने के बाद जब साहब के किसी दिन आने की सूचना मिलती है तो आप समय से कार्यालय पहुँच जाते हैं और 12 बजे तक साहब के आने का इंतजार करते हैं, जब साहब गाड़ी से उतरते हैं तो रस्ता छोड़कर झुककर हाथ जोड़कर उनके सम्मान में अपना सम्मान गिरवी रखते हैं।
फिर साहब आसन ग्रहण करते हैं और आप अपनी बारी का इंतजार बारी आने पर हाथ जोड़कर जी हुजूर, जी हुजूर कहते हुए काँपते हाथों से अपनी फरियाद सुनाते हैं कि साहब कुछ दया कर दें। आधी अधूरी फरियाद सुनने के बाद साहब आपको जाने का हुक्म देते हैं और लौटते समय आप हाथ जोड़कर 3 बार झुक झुककर सलामी ठोंकते हैं इस उम्मीद में कि साहब एक बार आपकी सलामी स्वीकार कर लें। लेकिन साहब कोई जवाब नहीं देते और उनका अर्दली आपको धकियाते हुए कहता है कि चलिये अब बाहर निकलिये ।
इतनी दीनता दिखाने के बाद और इतना सम्मान पाने के बाद आप खुशी-खुशी घर जाते हैं कि आज साहब मिल तो गये और उनसे बात हो गयी।
यही लोग स्कूल में आकर शेर बनते हैं और उस शिक्षक के सामने अपना पराक्रम दिखाते हैं जो उनके बच्चों का भविष्य संवारने के लिये गेंहू तक पिसवाकर रोटी खिलाता है। हाथ पकड़कर लिखना सिखाता है। डर से आँसु निकलने पर आपके बच्चे को गोदी में बैठाकर आँसु तक पोछता है। गली में जुआ खेलते दिख जाने पर आपके बच्चे को डाँटता भी है और ऐसे शिक्षक पर आपको धौंस जमाते हुए तनिक भी लज्जा नहीं आती।
आपके बच्चे को डाँट देने पर आप स्कूल में सवाल करने चले आते हैं कि 'मास्टर तुमने मेरे बच्चे को डाँटा क्यों ?' भले ही आप किसी पुलिस वाले से अक्सर बिना वजह डाँट खाते रहते हों। उनसे तो बिन गलती लाठी खाने पर भी आप माफी मांगने लगते हैं किन्तु मास्टर द्वारा अनुशासन बनाये रखने के लिए दी गयी डॉट पर भी आपको जवाब चाहिए।
आप ये भूल जाते हैं कि जब आप अपने बच्चे का रोना सुनकर उसकी पैरवी करने स्कूल आते हैं तो उसी समय आपके बच्चे के मन से अनुशासन के नियमों का भय निकल जाता है और वह और भी अनुशासनहीन हो जाता है। उसके मन से दंड का भय निकल जाता है और वह और भी उद्दंड हो जाता है। वह ये सोचने लगता है कि गलती करने पर उसके पापा उसका पक्ष लेंगे इसलिए गुरुजी से डरने की जरूरत नहीं। फिर तो वह स्कूल का कोई भी कार्य न करेगा। आप अपने बच्चे की पढ़ाई चाहते हैं या उसकी स्वच्छन्दता ?
कानून का भय यदि समाप्त हो जाय तो हर कोई कानून का उल्लंघन करने लगेगा, ठीक उसी प्रकार यदि अनुशासन का भय यदि खत्म हो जाय तो बच्चा स्वच्छन्द हो जाएगा। विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी।" ये हमारा दुर्भाग्य है कि बेसिक में पढ़ने वाले कई बच्चों के माता-पिता अनुशासन के महत्त्व से बिलकुल अनजान हैं और हर दंड को नकारात्मक ही लेते हैं।
जबकि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है भय बिन होय न प्रीति।' भय बिना अनुशासन भी सम्भव नहीं है और बिन अनुशासन शिक्षक छात्र सम्बन्धों की कल्पना
बेमानी सी होगी।
आप अपने परिवार को ही लीजिये, क्या आप बच्चे की गलती पर उसे दंड नहीं देते ? समझाने का असर एक सीमा तक ही होता है, वो भी हर एक पर असर भी नहीं करता । दंड का आशय सदैव उत्पीड़न नहीं होता, विद्यालय में तो हरगिज नहीं। विद्यालय में दंड का आशय अनुशासन स्थापित करने से होता है। यहाँ दंड का आशय पिटाई से न लगाएँ।
शिक्षक को सदैव खुशी होती है जब उसका कोई शिष्य उससे भी आगे निकलता है और इसी उद्देश्य से वह शिक्षा भी देता है कि उसका प्रत्येक शिष्य सफल हो। इसलिए आप शिक्षक के कार्यों का छिद्रान्वेषण न करें, न ही उस पर शंका।
जिस ईमानदारी से शिक्षक कार्य करते है वह अन्य विभागों के मुकाबले पारदर्शीे होते हैं। ये जब भी स्कूल जाते है तो घंटी बजा करके पूरे समाज को बताते है कि "हम विद्यालय आ गया है", और जब विद्यालय की छुट्टी होती है तब भी घंटी बजाते है और पूरे समाज को बताता है कि अब छुट्टी हो गई "हम जा रहे हैं।" यदि ऐसा और किसी भी विभाग में होता हो तो बताइए ? फिर भी शिक्षक और शिक्षा विभाग को क्यों संदेह से देखते हुए षड़यंत्र के तहत बदनाम किया जाता है ? शिक्षक जो सबको शिक्षा देता है और जो "अधिकारी, नेता" शिक्षक से ही पढ़ करके आगे बढ़े हैं उनमें से कतिपय शिक्षक की बुराई करने में अपनी बहादुरी मान बैठे हैं, अपमानित शिक्षक से शिक्षा व समाज दोनों को नुकसान हैं।
आखिर क्यों हथकंडे अपनाकर शिक्षक को बदनाम करने की मुहिम चलाई जा रही है ? जांच करने भी ऐसे कर्मचारी/अधिकारी भेजे जा रहे हैं जिनका शिक्षा से कोई सीधा जुड़ाव नहीं हैं, न ही उनका स्तर किसी भी रूप में शिक्षक के स्तर से बेहतर है। ये शिक्षकों का खुला अपमान व अक्षम्य शरारत व करतूत होकर आम तौर से शांत व अमन पसंद शिक्षकों को उद्वेलित व उकसावे की कार्रवाई है। शिक्षकों की ईमानदारी व राष्ट्रीयता इससे परिलक्षित होती हैं कि वे सुबह-शाम "भारत माता की जय" बोलते हैं और बुलवाते है अपने शिक्षार्थियो को राष्ट्र-प्रेम व नैतिक शिक्षा के साथ सर्वांगीण विकास से सुसज्जित करते हैं, उनकी कार्यप्रणाली संदेहास्पद कैसे कही जा सकती हैं ? अपवाद को छोड़कर शिक्षक अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ करते हैं। इन्हें परेशानी पढ़ने-पढ़ाने से नहीं हैं, परेशानी तो केवल विभागीय व गैर विभागीय आदेशों से हैं जो नित नये दिवस विद्यालय में मनाने, रैलियां निकालने, सर्वे, बोझिल व अनुपयोगी पाठ्यक्रम, "चालू विद्यालय" काल में प्रशिक्षण, धरातल से उठी शिक्षकों की आवाज अनदेखी कर वातानुकूलित कमरों कार्यालयों से अव्यवहारिक फरमान शिक्षा का स्तर रसातल में पहुँचाने के लिए दोषी है ।
विभाग ने ही विभाग को प्रयोगशाला बना दिया है, इसके लिए किसे दोष दें ? शिक्षकों को विद्यालयों में ठहर कर पढ़ाने दिया जाए तो कच्ची मिट्टी रूपी बच्चों को शिक्षा व ज्ञान से पकाते हुए समाजोपयोगी सर्वांगीण विकसित नागरिक समाज को अर्पित किये जा सकते हैं । शिक्षकों की अपेक्षा है कि "समाज व विभाग ससम्मान केवल व केवल पढ़ाने दें, यह आवाज समाज व समुदाय से उठना चाहिए लेकिन जागरूकता का अभाव निराश करता है । ये जिस दिन होगा उस दिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का चमत्कार देखने को मिल सकता हैं । शिक्षक निपुण हैं, और जो निपुण नहीं है इसके लिए सरकार की चयन प्रक्रिया व भ्रष्टाचार दोषी है । शिक्षा व शिक्षकों को राजनीति से परे रखा जाना देश व समाज के लिए अत्यावश्यक है ।