भोग में रोग और संपति में विनाश संलग्न है -जीयर स्वामी

in #chaturmas2 years ago

परिवार के लालन-पालन में ही न गवाएं जीवनIMG-20220812-WA0233.jpg

अपनी वृद्धावस्था और मृत्यु का रखें सदैव ख्याल..

बलिया। शहर से सटे जनेश्वर मिश्र सेतु के समीप चल रहे चतुर्मास महायज्ञ के दौरान संत जीयर स्वामी ने कहा कि मानव को अपना समस्त कर्म ईश्वर को समर्पित कर उन्हीं से अपना संबंध जोड़ना चाहिए। अन्यथा जीवन भर भय सताते रहेगा। जिस परिवार के भरण-पोषण के लिए व्यक्ति जीवन भर समस्त कर्म-कुकर्म कर संसाधन संग्रह करता है। वही परिवार वृद्धावस्था में उपेक्षा कर जीवन को बोझिल बना देता है। इसलिए मनुष्य को अपनी बुढ़ापे और मृत्यु को ध्यान में रखते हुए परमात्मा के प्रति समर्पित रहना चाहिए। सदाचारी और निर्लिप्त जीवन-यापन करने वाले व्यक्ति को कभी भय और उपेक्षा का दंश नहीं झेलनी पड़ती है, क्योंकि वह ईश्वर से जुड़ा रहता है।
स्वामी जी ने कहा कि शंकराचार्य ने वृद्धावस्था की स्थिति को इस प्रकार वर्णन किया कि जबतक व्यक्ति धनोपार्जन के लिए सक्षम होता है, परिवार के सारे लोग उससे चिपके रहते हैं। लेकिन जब वही व्यक्ति बुढ़ापा के कारण जर्जर हो जाता है और धनोपार्जन के लिए समर्थ नहीं होता, तब परिवार का कोई भी सदस्य उससे बात भी नहीं करता है। इसलिए गोविन्द का भजन करें, यही जीवन की असली चीज है।
श्री जीयर स्वामी ने कहा कि मनुष्य को भोग में रोग का, सम्पति में विनाश, धन में राजा (सरकार), विद्या में कलह, तप में इंद्रियों की चंचलता, रूप में वासना, मित्रों में शोक, युद्ध में शत्रु और शरीर में व्याधि व मरण का भय रहता है। केवल ईश्वर के शरण में ही अभयता है। भगवान के भक्तों को भय नहीं सताता, वहीं अक्षय सुख-शांति की प्राप्ति होती है।