बदलते दौर का दस्तावेज...
**एवरेस्ट-सी मूर्खता, परम पूज्य पाखण्ड।
सुन्दर धन्धा धर्म का, पाप-प्रताप अखण्ड।।
जहाँ धर्म के नाम पर जायज लूट-खसोट।
दान मान-धन-देह का, पाप-चरण में लोट।।
लुटने को तैयार जो, मिटने को तैयार।
सदा गुलामी में जिए, कुछ भी नहीं सुधार।।
उसे न शिक्षा चाहिए, नहीं चाहिए ज्ञान।
जो उसका सब लूट ले, है वो कृपानिधान।।
जड़ता जिसके खून में, अन्धी भक्ति प्रगाढ़।
उसको सब कुछ सौंप दे, जहाँ सम्पदा-बाढ़।।
पाकर मोटी दक्षिणा, फूले भोग-विलास।
दान मिले, भगवान बन रोज रचाये रास।।
बिना परिश्रम पेल घी, चिकनाई-सी देह।
सुलभ महल के ठाट सब, इसमें क्या सन्देह।।
चाहे चढ़े विमान वह, दसियों एसी कार।
धन्धक धोरी धर्म का, पैरालेल सरकार।।
सदा निरंकुश जानिए, क़दमों में सुल्तान।
कीट-पतिंगे भक्तजन, उनका नव भगवान।।
श्रद्धा भोली दण्डवत्, विस्तर-सा विश्वास।
निष्ठा फूलों-सी बिछी, पागल मोह सुदास।।
बौराया-सा देश यह, कहाँ किसी को होश।
आत्महनन के हेतु यह उमड़ा कैसा जोश।।
अन्धी भेड़ें ज्यों गिरे अन्धकूप सोल्लास।
जहाँ भोग के ही लिए पापी ले संन्यास।।
रंग-राग में सिक्त मन अम्बर भगवा धार।
ओट शिखण्डी, शर प्रखर कार्मुक कुसुम-प्रहार।।
छूटा इनसे कौन है कहो भला अपराध।
आखेटक विश्वास के विषवासी अघ-व्याध।।
रचनाकाल : 12 अक्टूबर, 2022
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-दोहा-महासागर : चतुर्थ अर्णव(प्रथम हिल्लोल)अमलदार नीहार]