क्या जलवायु परिवर्तन पर 500 अरब डॉलर खर्च कुछ बदल पाएगा अमेरिका

in #us2 years ago

जलवायु परिवर्तन (Climate change) पर अमेरिकी सरकार (US Government) बड़े स्तर पर खर्चे करने वाली है. अमेरिका की निर्लाभ संस्था आरएमआई (Non Profit RMI) के विश्लेषण में बताया गया है कि इस महीने अमेरिकी सरकार के तीन नए कानून के चलते अगले एक दशक में 500 अरब डॉलर खर्च करेगी. येकानून महंगाई कम करने, चिप्स एक् और पिछले साल बने अधोसंरचना निवेश एवं नौकरी कानून के कारण होने उठाए जाने वाले कदमों के आधार पर बताए गए हैं.
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और संभावनाओं पर सबसे ज्यादा अध्ययन (Studies on Climate Change) यूरोप और अमेरिका में ही होते हैं. भले ही पश्चिमी देशों और विकासशील देशों के बीच कार्बन उत्सर्जन को कम करने को लेकर कुछ मदभेद हों लेकिन पूर्ववर्ती ट्रम्प सरकार के रवैये के बाद भी अमेरिका में बहुत से लोग (और वर्तमान सरकार भी) जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रति गंभीर हैं. एक गैर लाभ वाली अमेरिकी शोध संस्था आरएमआई (Non Profit RMI) ने एक विश्लेषण में पाया है कि अमेरिकी सरकार अगले एक दशक में जलवायु तकनीक और स्वच्छ ऊर्जा (Climate Technology and Clean Energy) पर 500 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च करेगी.
तीन कानून करवाएं खर्च
विश्लेषण के इस तरह के नतीजों का आधार इसी महीने अमेरिका में बनने महंगाई कम करने वाला कानून और चिप्स एक्ट के साथ साथ पिछले साल के अधोसंरचना निवेश और नौकरी संबंधी कानून हैं. ये कानून मिलकर जलवायु संबंध शोध एवं पायलट अध्ययन और संबंधित निर्माण की फंडिंग करेंगे.

अमेरिका की हरित औद्योगिक नीति
जलवायु संबंधी तकनीक में निवेश जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण करने में तो सहायक होगा ही. इसके साथ ही लोगों को अन्य प्रक्रियाओं में भी जलवायु तकनीक और स्वच्छ ऊर्जा जैसे उपायों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करने का काम करेगा. ये कानून एक तरह से अमेरिका के हरित औद्योगिक नीति को प्रदर्शित कर रहे हैं.
कितना कितना खर्च
ये कानून कुछ रणनीतिक उद्योगों पर ध्यान दे रहे हैं और ये कानून ऐसे उपकरण हैं जो उत्पादन को सप्लाई चेन तक बढ़ाने का काम करेंगे. अनुमानित 514 अरब डॉलर में 363 अरब डॉलर आईआरए के लिए खर्च होंगे, 98 अरब डॉलर अधोसरंचना कानून के लिए और 54 अब डॉलर चिप्स कानून के लिए खर्च होंगे.

कृषि और भूमि शामिल नहीं
इनमें से चिप्स कानून को अमेरिका की दोनों प्रमुख पार्टियों का समर्थन है, जबकि कुछ कानूनों को अभी कांग्रेस की मंजूरी मिलना बाकी है जिससे इनमें से कुछ फंड तभी जारी किए जा सकेंगे. एक और खास बात यह है कि इस विश्लेषण में कृषि और भूमि संबंधित जलवायु खर्चों को शामिल नहीं किया गया है.
खर्चा भी बढ़ेगा
चिप्स बिल के तहत पदार्थ विज्ञान में जलवायु संबंधी प्रयासों के लिए पैसा खर्च किया जाएगा. इसमें ज्यादा कारगर सौर पैनल, नई बैटरी संबंधी रसायान आदि जैसे विषय शामिल हैं. इस विश्लेषण में यह भी बताया गया है कि अगले पांच सालों में जो जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा पर सालाना खर्चा होगा वह 1990 के दशक के अंत और 2000 के शुरू के समय के खर्चों से करीब 15 गुना ज्यादा होगा और हाल के सालों की तुलना में तिगुना ज्यादा होगा.

समय भी तो कम है
सरकार के आकलन दर्शाते हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादनों का बड़ा हिस्सा होती जा रही है. लेकिन विश्लेषण के लेखकों का कहना है कि इसे तेज करने के लिए क्लाइमेट एक्शन की जरूरत होगी. उनका कहना है कि यह एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है जिसके लिए शायद हमारे पास लंबा समय ना हो. जैसे सौर और पवन ऊर्जा को पूरी तरह से उपयोग में लाने में 40 साल लगेंगे लेकिन हमारे पास केवल दस साल का समय है.

बेशक जलवायु परिवर्तन पर इन कानूनों से कुछ मदद तो मिलेगी , लेकिन जितनी जरूरत है उतनी यानि अमेरिका और उसके साथ ही दुनिया के बाकी देशों को भी जलवायु केंद्रित स्पष्ट और कठोर कानून और नीतियों का अविलंब लागू करना होगा. वैज्ञानिक पहले से ही चेतावनी दे रहे हैं कि जल्दी ही हालात काबू से बाहर हो सकते हैं
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