गाय हमारी भारतीय संस्कृति की मेरुदण्ड है :भारती

in #fatehabad2 years ago

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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित श्रीकृष्ण कथा के चतुर्थ दिवस का शुभारम्भ मुख्यातिथि लक्षमण नापा एमएलए रतिया,प्रमोद बांसल प्रमुख समाजसेवी,रमेश मेहता व विजय चुघ ने ज्योति प्रज्ज्वलित करके किया। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा आयोजित पांच दिवसीय श्रीकृष्ण कथा के अंतर्गत श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुमेधा भारती जी ने कथा के दौरान कहा कि सकल विश्व की माता के दर्जे से मण्डित गाय हमारी भारतीय संस्कृति की मेरूदण्ड है। गाय के सुरक्षित रहने पर ही मानव जीवन व सकल वसुंधरा सुरक्षित रह सकती है। पुरातन भारत में गाय को माँ कहकर उसकी पूजा का विधान था जो अब तक चला आ रहा है। उन्होंने कहा कि पुरातन भारत में जब किसी को दान-दक्षिणा दी जाती थी या बेटी को दहेज दिया जाता था,तो इसमें गौ-दान ही सर्वोपरि था। भारत देश में हमारी भारतीय नस्ल की गौओं के दूध व दही की नदियां बहा करती थीं। गाय को माता का दर्जा प्राप्त था। क्योंकि वह अपने दूध, दही इत्यादि पंचगव्य पदार्थों से हमारा भरण-पोषण करती थी। गाय के मूत्र में अनेकों ही अच्छे तत्त्व पाए जाते हैं। जिनकी गुणवत्ता को देख कर वैज्ञानिकों ने इसे उत्तम स्वास्थ्य रसायण का नाम दिया। आज वैज्ञानिक सिद्ध कर चुके हैं कि गाय के मूत्र से लगभग चार सौ बिमारियां ठीक होती हैं। टी.बी.व कैंसर जैसे भयानक रोगों में तो गौमूत्र राम बाण औषधि है। गाय के गोबर का लेपन पुरातन काल में रसोई घर एवं ऋषि-मुनियों के द्वारा आश्रमों व हवन कुड के इर्द-गिर्द किया जाता था। क्‍योंकि गोबर कीटाणुनाशक होता है। जिस स्थान पर इसका लेपन होता है, वह स्थान कीटाणुओं से रहित हो जाता है। भारत कृषि प्रधान देश है और गाय पालन के कारण इसकी कृषि उन्नत थी। क्योंकि किसान की खेती का मुख्य स्रोत गाय ही थी। गाय के गोबर की खाद से भूमि ऊपजाउ रहती थी। त्रासदी का विषय तो यह है कि आज हम अपनी माता का सम्मान करना ही भूल गए हैं। खेतों में गाय के गोबर की खाद का स्थान अब अनेकों रसायनों ने लिया है। भारतीय देसी गाय कत्लखानों में कट रही है। भारत में अब कहाँ दूध-दही की नदियां बहती हैं। भारतीय नस्ल की गोओं की गिनती भारत में कम होती चली जा रही है। विदेशी जिस गाय के महत्व को समझ रहे हैं, हम अपनी उसी गाय की महानता को भुला कर रुग्ण हो रहे हैं। भारतवासियों को समय रहते अपनी गाय माता के संवर्धन व संरक्षण हेतु आगे आना होगा। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने गाय संरक्षण व संवर्धन हेतु ठोस कदम उठाया है। संस्थान के कामधेनु प्रकल्प के तहत अनेकों गौशालाओं का निर्माण किया गया। इन गौशालाओं में भारतीय नस्ल की साहीवाल,थारपारकर, गीर, कांकरेज,राठी,कपिला आदि गौओं की नस्ल को सम्मलित किया जा रहा है। आज वैज्ञानिकों व रिसर्च टीम के लिए यह गौशालाएँ रिसर्च सैन्टर बन चुकी हैं। बिना किसी बाहरी सहायता के पिछले दस सालों में कामधेनु प्रकल्प ने गो संवर्धन व नस्ल सुधार में इतनी सफलता प्राप्त की कि भारत सरकार ने इस प्रकल्प को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया और कामधेनु गौशाला को उत्तर भारत की प्रथम गौशाला घोषित किया। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान मानव समाज को आह्वान करता है कि वह गौ संरक्षण हेतु जागृत हो। कथा में शहर की समस्त धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं का भरपूर सहयोग मिल रहा है। कथा में शहर के गणमान्य सज्जनों सहित काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहें। कथा का समापन प्रभु की पावन पुनीत आरती से किया गया,जिसमें आए हुए सभी गणमान्य लोग उपस्थित रहे। समस्त संगत ने भोजन के रूप में प्रसाद्ध को ग्रहण किया।