स्वच्छ भारत मिशन अभियान को पलीता लगाता बलिया जिले का सोहांव ब्लॉक

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ख़बर यू पी के बलिया जनपद के सोहांव ब्लॉक का हैं।
'तुम्हारे कागजों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है' अदम गोंडवी के इन अल्फाज की तरह ही हालत हैं विकास खंड सोहांव की।
हाल ही में इस ब्लॉक को आकांक्षात्मक ब्लॉक का दर्जा मिला है। जिसको लेकर बड़े बड़े दावे किए जा रहे है।खंड विकास अधिकारी ने अपने बयान में विकास के कागजी आंकड़े पेश कर खूब वाह वाही भी लूटी पर जब विकास के इस दावे की जमीनी हकीकत जांची गई तो सारे विकास कार्यों में भ्रष्टाचार का दीमक लगा हुआ मिला।
स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने हेतु सरकार द्वारा व्यक्तिगत के साथ साथ सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कराया गया।इनका उद्देश्य यह था की लोग खुले में शौच करना बंद कर दें।कागजों में तो अधिकतर गांवों को ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त ग्राम सभा का तमगा भी दे दिया गया।परंतु जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट नजर आती है।
बात करें विकास खंड सोहांव की तो इस ब्लॉक में कुल 56 ग्राम सभाओं में से 46 ग्राम सभाओं में सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया जा चुका है,परंतु यह शौचालय अपने उद्देश्य से भटककर धन उगाही करने की मशीन में तब्दील हो गए है।एक सामुदायिक शौचालय के निर्माण में औसतन लगभग 5.50 लाख की लागत आती है।इस हिसाब से ब्लॉक के 46 शौचालय के निर्माण में लगभग 2 करोड़ 53 लाख की धनराशि खर्च की जा चुकी है।साथ ही इन शौचालयों के रख रखाव हेतु स्वयं सहायता समूहों को हस्तांतरित किया गया है।जिनको प्रतिमाह 6 हजार रुपए और साफ सफाई साबुन इत्यादि के नाम पर 3 हजार प्रतिमाह का भुगतान जारी है।इन सारे मदों को मिलाकर 4968000 रुपए वार्षिक की धनराशि भी वर्षों से खर्च की जा रही है।इन सारी कवायदों को कागजी आंकड़े समेटे हुए है।
परंतु धरातल पर ब्लॉक के 46 शौचालय में से शायद ही किसी का ताला अब तक खुला हो।निर्माण की गुणवत्ता की बात करें तो आलम यह है की दीवारें टूटकर बिखर रही है और पानी की सप्लाई तक नही है।कुछ शौचालय तो अधूरे होने के बावजूद केवल कागजों में पूर्ण दिखा दिए गए है।ऐसे में अगर शौचालयों का ताला नहीं खुलता तो स्वयं सहायता समूह और साफ सफाई के पैसे की बंदरबांट कहा हो रही है।
विकास खंड के पिपरा कला,दरियापुर,कथरिया,सोबन्था, इटही में बने शौचालय अपना वजूद खो चुके हैं।हालत इतनी जर्जर है की कोई भी उसके आस पास नहीं फटकता।ग्रामीण बताते है 4 से 5 साल पहले बने यह शौचालय कभी भी प्रयोग में नही आए।कितने में बने और कितना रख रखाव में खर्च होता है यह सब सचिव साहब और प्रधान जी जानते है।
इस संबंध में जब सहायक खंड विकास अधिकारी देवानंद गिरी से पूछा गया की ब्लॉक के 46 गांवों के सामुदायिक शौचालय की क्या स्थिति है तो उन्होंने बताया की सभी सामुदायिक शौचालय सुचारू रूप से चल रहे है।इस बयान से यह साफ परिलक्षित हो रहा है की या तो एडीओ पंचायत साहब अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते या फिर सच्चाई से मुंह छिपा रहे है।अगर पूरे शौचालय की जांच किसी सक्षम अधिकारी से कराया जाए तो सरकारी पैसे के बंदरबांट का बड़ा मामला खुलेगा।
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