S_400 indian supply : रूसी s_400 मिसाइल पर आखिर क्यों नरम पड़ा बाइडन प्रशासन,

in #india2 years ago

Screenshot_2022-07-23-09-24-13-75_6ee1490f6338a5d500212cdd6f65b6c2.jpgक बार फ‍िर रूसी मिसाइल सिस्‍टम S-400 की आपूर्ति को लेकर भारत और अमेरिका के संबंधों की चर्चा जोरों पर हैं। S-400 मिसाइल को लेकतर अमेरिका ने तुर्की पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे यह कयास लगाए जा रहे थे कि भारत को भी रूसी एस-400 हासिल करने के बाद अमेरिका के कोप का भाजन होना पड़ सकता है। हालांकि, अमेरिका ने इस रक्षा डील पर भारत के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया है। अमेरिकी संसद में एक लाबी भारत के इस रक्षा डील का समर्थन कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत के प्रति अमेरिकी झुकाव के क्‍या बड़े कारण है। क्‍या बाइडन प्रशासन तुर्की की तरह भारत पर प्रतिबंध लगाएगा। क्‍या भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। यह सवाल तब और अहम हो जाता है जब यूक्रेन जंग के दौरान भारत ने अमेरिका के खिलाफ जाकर संयुक्‍त राष्‍ट्र में रूस के खिलाफ मतदान में हिस्‍सा नहीं लिया था। आइए जानते हैं क‍ि इस पर विशेषज्ञों की क्‍या राय है।

भारत के पक्ष में अमेरिका के शीर्ष सीनेटर

रिपब्लिकन पार्टी के एक शीर्ष सीनेटर ने रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने पर भारत को प्रतिबंधों से छूट देने की बढ़ती मांगों का समर्थन करते हैं। पिछले वर्ष भारत व दक्षिण पूर्व एशिया का दौरा करने वाले प्रतिनिधिमंडल के सदस्य रहे टामी टबरविले ने कहा था कि हम रूस की एस-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद के लिए भारत को प्रतिबंधों से छूट देने का समर्थन करते हैं। भारत के साथ हमारे संबंध मजबूत हो रहे हैं। उधर, अमेरिका ने रूस द्वारा भारत को एस-400 मिसाइल प्रणाली दिए जाने पर चिंता जताई है। बाइडन प्रशासन ने अभी यह स्पष्ट नहीं कर सका है कि वह एस-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद के लिए काउंटरिंग अमेरिकाज एडवरसरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट (सीएएटीएसए) के प्रविधानों के तहत भारत पर प्रतिबंध लागू करेगा या नहीं। बाइडन प्रशासन भारत पर प्रतिबंध लगाने की स्थिति में नहीं

विदेश मामलों के जानकार प्रो. हर्ष वी पंत का मानना है कि वर्तमान हालात में बाइडन प्रशासन भारत पर प्रतिबंध लगाने की स्थिति में नहीं है। उन्‍होंने कहा कि भारत-अमेरिका संबंध अब एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं। इसलिए भारत पर प्रतिबंधों की बात अब उतनी आसान नहीं है। बाइडन प्रशासन को रूस यूक्रेन जंग के अलावा दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर और ताइवान भारत को चीन से मिल रही सुरक्षा चुनौती को समझना होगा। इसके अलावा भारत क‍िसी अन्‍य देश के दबाव में आकर अपनी रक्षा नीति को नहीं बदल सकता है। भारत की विदेश नीति स्‍वतंत्र है। प्रो पंत ने कहा कि इसके अलावा अमेरिकी सीनेट में भारत का पक्ष लेने वाला समूह काफी प्रभावशाली है। अमेरिकी सीनेट में बड़ी संख्‍या में भारतीय मूल के सांसद हैं। वह भारत के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले बाइडन प्रशासन पर इस शक्तिशाली समूह का दबाव रहेगा। ऐसे में इस बात की उम्‍मीद कम ही है कि बाइडन प्रशासन भारत के खिलाफ कोई कदम उठाएगा। वह भारत पर किसी तरह से सैन्‍य या आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा।

भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार

प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका इस समय रूस और चीन पर पूरा फोकस कर रहा है। उसका पूरा ध्‍यान रूस और चीन पर है। महाशक्ति की होड़ में अब चीन भी अमेरिका को टक्‍कर दे रहा है। ऐसे में अमेरिका यह जानता है कि चीन पर नकेल कसने के लिए भारत अमेरिका का एक बड़ा सहयोगी हो सकता है। क्‍वाड के गठन में यह बात तय हो गई है कि अमेरिका की नई रक्षा रणनीति में भारत की भूमिका अहम होगी। इसलिए अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति कमजोर हो। आज अमेरिका की चुनौतियों को देखते हुए भारत अमेरिका की एक बड़ी जरूरत बन गया है। उन्‍होंने कहा कि अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के दौर में भारत-अमेरिका संबंधों को एक नई दिशा मिली। अमेरिका ने भारत को रणनीतिक साझेदार का दर्जा दिया था। इसके बाद भारत और अमेरिका के बीच रक्षा समझौतों में काफी तेजी आई है। अगर अमेरिका भारत पर प्रतिबंध लगाता है तो रणनीतिक साझेदार का दर्जा अपने आप खत्म हो जाएगा। इससे अमेरिका की रक्षा बिक्री को बड़ा झटका लग सकता है।

वर्ष 2018 में हुआ था रक्षा सौदा

अमेरिका शुरू से ही रूसी S-400 मिसाइल सिस्‍टम की आपूर्ति को लेकर अपनी नाराजगी व्‍यक्‍त कर चुका है। गौरतलब है कि भारत और रूस के बीच यह रक्षा सौदा वर्ष 2018 में हुआ था, तब से अमेरिका इस रक्षा डील का विरोध कर रहा है। इतना ही नहीं ट्रंप शासन काल में अमेरिका भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दे चुका है, लेकिन भारत अपने स्‍टैंड पर शुरू से कायम है। भारत कई बार कह चुका है कि वह रूस के साथ रक्षा डील के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के कई नेता भारत के पक्ष में हैं। अमेरिकी सांसद में एक मजबूत खेमा भारत की इस रक्षा डील की वकालत करता रहा है