भारत-पाकिस्तान का वो मोर्चा जिसे 'दुनिया का सबसे ऊंचा मैदान-ए-जंग' कहा जाता है
अगर जीत के इरादे से बेखौफ होकर युद्ध भूमि में जाएंगे तो बगैर खरोंच के वापस घर आ पाएंगे. ''
जापान के 16वीं सदी के सेनापतियों में से एक युसुगी केनसिन ने जब ये बात कही थी तो शायद ही उन्होंने कभी ये सोचा होगा कि किन्हीं दो देश की सेनाएं समुद्र के बजाय बादलों के नजदीक एक दूसरे के आमने-सामने होंगीं और वो भी 15-15 मीटर ऊंची बर्फ के बीच.
पिछले चार दशक से भारत और पाकिस्तान के हजारों सैनिक एक दूसरे के सामने ऐसे ही हालात में मुस्तैद हैं.
जिस जगह पर सैनिकों के आमने-सामने की मोर्चेबंदी है, उसे सियाचिन ग्लेशियर कहा जाता है. इसे दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध का मोर्चा माना जाता है.सियाचिन ग्लेशियर कश्मीर के उत्तर में 6700 मीटर की ऊंचाई पर है. ये इसलिए घातक नहीं माना जाता है कि यहां की ढलानों और घाटियों में बड़ी तादाद में दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं बल्कि इसलिए कि यहां की जलवायु और दुर्गम इलाके जानलेवा हैं.3 अप्रैल 1984 को यहां भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच मुठभेड़ हुई थी जिसके बाद से यहां दोनों देशों की फौज एक दूसरे के सामने खड़ी है. इसके बाद से यहां दोनों देश के हजारों सैनिक जमा देने वाली ठंड, बर्फीले तूफान और हिम स्खलन की घटनाओं में मारे जा चुके हैं.
इतना ही नहीं जो लोग हिम स्खलन में मारे गए हैं उनमें से कइयों के शव अभी तक बरामद नहीं हो पाए हैं.समाचार एजेंसी पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि उन्होंने चंद्रशेखर हरबोला नाम के सैनिक के शव के अवशेष खोज निकाला है.
साल 1984 में वो ग्लेशियर में गश्त करने के दौरान अपने 19 साथियों के साथ हिम स्खलन में फंस गए थे.
हरबोला उत्तराखंड के रहने वाले थे. इतने साल के बाद राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गई. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक दरअसल गश्ती टीम के लिए हरबोला का नाम शामिल नहीं था. लेकिन आखिरी वक्त में एक सैनिक के बीमार पड़ने की वजह से हरबोला को इस टीम में शामिल किया गया.
इस तरह का यह कोई पहला मामला नहीं है. 2014 में भारतीय सेना की एक गश्ती टीम को तुकाराम पाटिल की लाश मिली. बताया जाता है कि 21 साल पहले इस इलाके में पाटिल गायब हो गए थे.अप्रैल 1984 में भारतीय सेना ने यहां ऑपरेशन मेघदूत चलाकर सियाचिन ग्लेशियर को अपने नियंत्रण में ले लिया था.
पाकिस्तान ने 1970 के दशक में इसे कब्जा करने की कोशिश की थी.
पाकिस्तानी सेना ने तब से कई बार यहां भारतीय सेना से यह जगह छीनने की कोशिश की लेकिन उसे नाकामी ही हाथ लगी.
एक कोशिश पाकिस्तानी सेना के एक युवा अफसर परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में हुई थी लेकिन ये भी नाकाम रही.
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